जिंदगी की शुरुआत बचपन से होती है। हर किसी के जीवन में यह जरूर आता है। बचपन के दिन वोह सुनहरे पल है जिन्हें शायद ही कोई भुलाना चाहे। जब कभी ख़ाली वक़्त मिलता है, हम इनमे खो से जाते हैं । वोह प्यारे दोस्त ,वो ढेर सारे खिलौने ,वो अपने भाई बहनों से लड़ना झगड़ना और घर का कोई पसंदीदा कोना जहाँ अपने खिलोनो को छुपा के रखना। बारिश के मौसम में छत पे नहाना और फिर जब शर्दी हो जाती तो माँ का प्यार से डांटना और तौलिये से बालों को पोंछना । स्कूल का वो पहला प्यार, और जब वो क्लास में होती तो उसके सामने हीरो बनना और कभी कभी इसी चक्कर में बेंच से गिरकर दांतों का टूटना । इंटरवल में पापा से स्कूल जाने के लिए मांगे पैसों से कुल्फी खाना और कुल्फी का पिघल कर नीचे गिर जाना और फिर टूटे दांतों से खिखिकर हसना। गली में जब मदारी आये तो छत पे चढ़कर ऊपर से झाकना और ताली बजाना । जब कभी मेला लगे तो वहां वहां जाने के लिए फटाफट तैयार हो जाना और सबसे आगे आगे चलना खिलोने की दुकान पे जाके अपने मनपसंदीदा कार के लिए जिद करना और फिर मम्मी की डांट सुनना फिर घर पहुंचकर पापा का वही वाली कार देकर surprise करना। रात में पडोसी भैया, दीदी का भूतों वाली कहानी का सुनाना और फिर डरकर सभी का चिपककर बैठना । सुबह स्कूल न जाने के लिए पेट में दर्द होने के बहाने बनाना और तब मम्मी का कहना की tiffin में favourite हलवा बनाया है तो झटपट उठ जाना । जाने कहाँ गए वो दिन वो पता नहीं अब कब लौट कर आयेंगे ?प्यारा सा बचपन दुलारा सा बचपन ।कोई लौटा दे वो सुनहरे पल ...